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लैपरोस्कोपिक सर्जरी कोलोरेक्टल स्थितियों के लिए: एक व्यापक अवलोकन
Sat - November 18, 2023 8:09 am  |  Article Hits:155  |  A+ | a-
लैपरोस्कोपिक सर्जरी कोलोरेक्टल स्थितियों के लिए: एक व्यापक अवलोकन
लैपरोस्कोपिक सर्जरी कोलोरेक्टल स्थितियों के लिए: एक व्यापक अवलोकन
लैपरोस्कोपिक सर्जरी कोलोरेक्टल स्थितियों के लिए: एक व्यापक अवलोकन

प्रस्तावना:

लैपरोस्कोपिक सर्जरी एक नई और प्रगतिशील चिकित्सा प्रक्रिया है जो आपके कोलोरेक्टल (बवासीर, फिशर, गुल्मोहर आदि) समस्याओं का समाधान करने के लिए किया जा सकता है। यह प्रक्रिया अपनी छोटी गोलाई और तकनीकी प्रयोगशीलता के लिए प्रसिद्ध है और अच्छी तरह से साबित करती है कि यह एक सुरक्षित और इंवेजिव समाधान है।

लैपरोस्कोपिक सर्जरी: कोलोरेक्टल स्थितियों के लिए एक व्यापक अवलोकन

लैपरोस्कोपिक सर्जरी क्या है?

लैपरोस्कोपिक सर्जरी एक तकनीक है जिसमें चिकित्सक एक छोटी सी व्यावसायिक चाकू के साथ एक या एक से अधिक छोटे छेदों के माध्यम से विभिन्न स्थानों की चिकित्सा करते हैं। यह उन्हें एक बड़े ऑपन सर्जरी की तुलना में कम चोटी मिलने के लिए अनुमति देता है, जिससे रोगी कम समय में ठीक हो सकता है और उच्चतम तकनीकी प्रदर्शन को होता है।

लैपरोस्कोपिक सर्जरी का इतिहास:

लैपरोस्कोपिक सर्जरी का आरंभ उच्चतम तकनीकी उन्नति के साथ हुआ था, और इसने सुरक्षित और दक्ष चिकित्सा से जुड़े कई पहलुओं को बदला है। इस प्रक्रिया का पहला सफल प्रयोग 1987 में हुआ था, और इसके बाद से यह विकसित होता रहा है। लैपरोस्कोपिक सर्जरी ने विभिन्न चिकित्सा क्षेत्रों में अपना विस्तार किया है, जिसमें कोलोरेक्टल सर्जरी भी शामिल है।

लैपरोस्कोपिक कोलोरेक्टल सर्जरी के प्रकार:

लैपरोस्कोपिक कोलोरेक्टल एक्सिसन:

इस प्रकार की सर्जरी में बड़ा भाग कोलोन को निकाल दिया जाता है और बाकी भाग को फिर से जोड़ा जाता है। यह बड़े रोगी को ठीक करने का एक उत्तम तकनीक है।

लैपरोस्कोपिक सिग्माइडेक्टोमी:

इसमें सिग्मा कोलन का एक हिस्सा हटाया जाता है, जो कोलोन का एक छोटा हिस्सा है और अक्सर गुल्मोहर या फिशर की समस्याओं का समाधान करने के लिए किया जाता है।

लैपरोस्कोपिक आपरेक्टोमी:

यह सर्जरी अटैच्ड आपेंडिक्स को निकालने के लिए की जाती है, जो अटैच्ड होने पर सूजन और दर्द का कारण हो सकता है।

लैपरोस्कोपिक हेमरॉयडेक्टोमी:

इस प्रकार की सर्जरी में बवासीर के मस्से को निकालने के लिए लैपरोस्कोप इस्तेमाल किया जाता है, जिससे रोगी को ज्यादा दर्द नहीं होता है और वह तेजी से ठीक हो सकता है।

लैपरोस्कोपिक सर्जरी के लाभ:

कम चोटी:

लैपरोस्कोपिक सर्जरी में छोटे छेदों के माध्यम से कार्रवाई की जाती है, जिससे रोगी को कम चोटी मिलती है और वह जल्दी ठीक हो सकता है।

कम ब्लड लॉस:

इस प्रकार की सर्जरी में ब्लड लॉस कम होता है, जिससे रक्तदाब की समस्याएं कम होती हैं और रोगी की स्थिति स्थिर रहती है।

तेजी से रिकवरी:

लैपरोस्कोपिक सर्जरी के बाद रोगी जल्दी अपनी सामान्य गतिविधियों में वापसी कर सकता है, जिससे उसका समय और ऊर्जा बचता है।

सावधानियाँ और संभावित समस्याएं:

हालांकि लैपरोस्कोपिक सर्जरी कई लाभ प्रदान कर सकती है, इसमें भी कुछ सावधानियाँ और संभावित समस्याएं हैं। रोगी को इस प्रक्रिया से पहले अच्छे से समझाया जाता है और सभी संभावित रिस्क्स के बारे में सूचित किया जाता है।

निष्कर्ष:

लैपरोस्कोपिक सर्जरी कोलोरेक्टल स्थितियों के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प है जो अधिकतम तकनीकी सहायता के साथ आपको तेजी से ठीक कर सकता है। इस चिकित्सा प्रक्रिया के अवलोकन से हम यह सिखते हैं कि चिकित्सक और रोगी को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कौन-कौन सी उपायगिता सर्जरी करना सही है और कैसे इससे संबंधित समस्याओं को सुलझाया जा सकता है।

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